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इच्छुक किसान इस तारीख से पहले करें आवेदन, मिलेगा 1 लाख रुपए का इनाम

इच्छुक किसान इस तारीख से पहले करें आवेदन, मिलेगा 1 लाख रुपए का इनाम

जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए सरकार लगातार अलग अलग तरह से किसानों को प्रोत्साहित कर रही है। केंद्र व राज्य सरकार अलग अलग योजनाओं के तहत किसानों को भिन्न-भिन्न प्रकार की सहूलियत व सब्सिडी देकर जैविक खेती को आगे बढ़ाने का प्रयास कर रही है। अलग अलग राज्यों में अलग अलग तरह का प्रोत्साहन किसानों को दिया जा रहा है। इसी कड़ी में राजस्थान सरकार ने बड़े स्तर पर किसानों को जैविक खेती से जोड़ने के लिए तीन किसानों को सर्वश्रेष्ठ अवार्ड देने का ऐलान भी किया गया है।

किस तरीके के किसान होंगे इस योजना के लिए पात्र

राजस्थान कृषि विभाग के उपनिदेशक डॉ गुण राम मटोरिया बताते हैं, कि किसान, जो पांच वर्षों से कृषि उद्यानिकी फसलों में जैविक तरीके से उत्पादन कर रहे हो तथा पिछले दो वर्षों से उनके जैविक उत्पादों का प्रमाणीकरण हो रहा हो। वैसे किसान इस योजना के लिए पात्र होंगे या उनको इस योजना के पात्रता में वरीयता दी जाएगी। इतना ही नहीं है, इसके पात्रता के लिए मटोरिया बताते हैं, कि जिन किसानों के खेत में जैविक खेती के लिए वर्मी कम्पोस्ट इकाई हो या स्वयं के द्वारा तैयार किए गए जैव कीटनाशक, जैव उर्वरक का उपयोग कर फसल उगाते हों। इसके अलावा जो भी किसान जैविक खेती संबंधी कोई नया प्रयोग करता हो या फिर राजकीय संस्थान से प्रमाणित हो वह किसान भी इस अवार्ड के लिए पात्र माने जाएंगे।


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कितने किसानों का होगा चयन

गौरतलब है, कि इस अवॉर्ड के लिए इच्छुक किसान 10 दिसंबर तक आवेदन कर पाएंगे। उनके आवेदन के बाद जिलाधिकारी की अध्यक्षता में एक टीम गठित की जाएगी जो जिले स्तर पर मिलने वाले आवेदन को देख कर एक किसान का चयन करेंगे। अलग अलग जिलों से इस अवॉर्ड के लिए तीन किसानों का चयन किया जाएगा। चयनित किसानों को एक-एक लाख का नकद इनाम भी दिया जाएगा।

जैविक खेती से है कई फायदे

राज्य व केंद्र सरकार जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए नए-नए तकनीक ले कर आ रही है, जिससे किसान भी लाभान्वित हो रहे हैं। यह जानकर आश्चर्य होगा कि किसानों के द्वारा लगातार रासायनिक खाद का प्रयोग करने से मिट्टी की उर्वरक शक्ति कम हो जाती है। जिससे किसानों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है। रासायनिक खाद के प्रयोग से उगाई गयी सब्जी व फल खाने के बाद लोगों को कई बीमारी से भी गुजरना पड़ रहा है। इसलिए केंद्र व राज्य सरकार किसान व आम लोगों के स्वास्थ्य को देखते हुए जैविक खेती पर काफी जोर दे रही है और इस प्रकार के कई प्रोत्साहन भी किसानों को दे रही है। जिससे किसान का जैविक खेती की तरफ रुझान बढ़ सके।
जल्द ही इस राज्य के 3.17 लाख किसानों को मिलेगा बिना ब्याज का फसल ऋण

जल्द ही इस राज्य के 3.17 लाख किसानों को मिलेगा बिना ब्याज का फसल ऋण

केंद्र सरकार के साथ-साथ राज्य सरकारें भी किसानों की आय बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। इसके लिए लगभग सभी राज्य सरकारें अपने स्तर पर प्रयास भी कर रही हैं। जिसके अंतर्गत सरकारें किसानों को खाद बीज से लेकर सौर कृषि सिंचाई पंप तक उपलब्ध करवा रही हैं, ताकि किसान अपनी उत्पादकता को तेजी से बढ़ा सकें। खेती करने के लिए किसानों को सरकारें ऋण भी उपलब्ध करवाती हैं, ताकि किसानों को धन की कमी न पड़े। कई बार तो किसानों की ब्याज भी सरकारें खुद ही वहन करती हैं, ताकि किसानों के ऊपर अतिरिक्त बोझ न पड़े।


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इस कड़ी में राजस्थान सरकार भी अपने किसानों का खास ख्याल रखते हुए उन्हें धन उपलब्ध करवा रही है। ताकि किसानों को पैसों की तंगी का सामना न करना पड़े। राजस्थान की कैबिनेट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए कहा है, कि राज्य सरकार राजस्थान के किसानों को लोन देने की योजना में 3.17 लाख अतिरिक्त किसानों को शामिल करने जा रही है। जिसमें किसानों को बिना ब्याज के लोन बांटा जाएगा, साथ ही यह काम मार्च 2023 के पहले पूर्ण कर लिया जाएगा। इसके पहले किसानों को लोन देने की योजना के अंतर्गत इस साल नवम्बर माह तक सरकार ने 26.92 लाख किसानों को लोन बांटा है। इस योजना के अंतर्गत सरकार ने किसानों को अब तक 12 हजार 811 करोड़ रुपये का लोन दिया है। राजस्थान सरकार ने इस योजना में इस साल 1.29 लाख नए किसानों को जोड़ा है। अब इस योजना को आगे बढ़ाते हुए राज्य सरकार सभी किसानों को सहकारी समितियों के साथ जोड़ रही है। जो किसानों को बेहद आसानी से लोन उपलब्ध करवाती हैं।


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किसानों को लोन उपलब्ध करवाने की जानकारी सहकारिता विभाग के अधिकायों ने एक बैठक में दी। यह बैठक जयपुर स्थित अपेक्स बैंक के हॉल में पूर्ण हुई। इस अवसर पर अधिकारियों ने बताया कि राज्य सरकार किसानों को बिना ब्याज का ऋण उपलब्ध करवाने के लिए प्रतिबद्ध है। इसके लिए राज्य सरकार नेशनल बैंक फॉर रूरल एंड एग्रीकल्चर डेवलपमेंट (नाबार्ड) की योजनाओं का उपयोग करेगी। अपेक्स बैंक के हॉल में हुई मीटिंग में अधिकारियों ने बताया कि सरकार लगातार किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए प्रयत्न कर रही है। इसको ध्यान में रखते हुए किसानों को एग्री बिजनेस के मॉडल से जोड़ने के लिए केंद्र सरकार और राज्य सरकार ने कई योजनाएं शुरू की हैं। अगर केंद्र सरकार की बात करें तो केंद्र सरकार ने खेती बाड़ी को बढ़ावा देने के लिए एग्री क्लिनिक-एग्री बिजनेस सेंटर योजना की भी शुरुआत की है। इन योजनाओं का लाभ उठाकर किसान भाई कृषि का धंधा या कृषि स्टार्टअप की शुरुआत कर सकते हैं, जिससे किसानों को अपनी आमदनी बढ़ाने में मदद मिल सकती है।


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इसके साथ ही बैठक के दौरान बताया गया कि एग्री क्लिनिक-एग्री बिजनेस सेंटर योजना के अंतर्गत सरकार किसान को 45 दिनों का प्रशिक्षण देती है। यह प्रशिक्षण सरकार की तरफ से कृषि लोन या आर्थिक सहायता मिलने से पहले ही दिया जाता है। जिससे किसान को कई तरह के फायदे होते हैं ओर वह अपने बिजनेस को तेजी से आगे बढ़ा सकता है। पहले जहां किसानों को सहकारी समितियों से सीमित मात्रा में ही लोन मिलता था और उसके लिए किसानों को बहुत सारी परेशानियां झेलनी पड़ती थी। लेकिन अब स्थिति परिवर्तित हो रही है। अगर वर्तमान की बात करें तो अब एग्री बिजनेस यानी कृषि से जुड़ा कोई भी व्यवसाय करने के लिए नेशनल बैंक फॉर एग्रीकल्चर एंड रूरल डेवलपमेंट (नाबार्ड) बहुत आसानी से लोन उपलब्ध करवाता है। यह लोन 20-25 लाख रुपये तक हो सकता है, जिसके लिए किसानों को किसी भी प्रकार की परेशानी का सामना नहीं करना होता है।


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अगर किसानों को आर्थिक तौर पर सशक्त करने की बात करें, तो केंद्र सरकार ने कई योजनाएं चलाई हैं। जिन योजनाओं के माध्यम से किसानों को सब्सिडी उपलब्ध कारवाई जा रही है ताकि किसानों के ऊपर अतिरिक्त बोझ न पड़ने पाए। यह सब्सिडी ऋण पर लगने वाले ब्याज पर दी जाती है, जो 36 प्रतिशत से 44 प्रतिशत तक हो सकती है। इस सब्सिडी योजना में समान्य वर्ग के किसान को ब्याज पर 36 प्रतिशत की सब्सिडी दी जाती है जबकि एससी-एसटी और महिला आवेदकों को ब्याज पर 44 प्रतिशत सब्सिडी प्रदान की जाती है। केंद्र सरकार की योजना के अनुसार यदि 5 या 5 से अधिक किसान ऋण लेने के लिए एक साथ आवेदन करते हैं, तो उन्हें 1 करोड़ रुपये तक का ऋण दिया जा सकता है, साथ ही केंद्र सरकार किसानों को प्रशिक्षण भी दिलवाती है।
केंद्र सरकार ने 'खोपरा' नारियल के न्यूनतम समर्थन मूल्य को दी मंजूरी

केंद्र सरकार ने 'खोपरा' नारियल के न्यूनतम समर्थन मूल्य को दी मंजूरी

भारत सरकार देश के किसानों की आय को बढ़ाने के लिए लगातार प्रयास कर रही है। इसी कड़ी में राज्य तथा केंद्र सरकारें आए दिन कृषि नीति और कानून में किसान हितैषी बदलाव करती रहती हैं। ताकि किसानों को फायदा हो और वह अपने पैरों पर खड़ी रह सकें। हाल ही में भारत सरकार की कैबिनेट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए मिलिंग खोपरा (नारियल) के न्यूनतम समर्थन मूल्य में 270 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोत्तरी की है। इसी के साथ सरकार ने घोषणा की है, कि अब बॉल खोपरा के न्यूनतम समर्थन मूल्य में भी 750 रुपये प्रति क्विंटल बढ़ोत्तरी की गई है। सरकार की इस घोषणा से नारियल उत्पादक किसानों को राहत मिलने की उम्मीद है। न्यूनतम समर्थन मूल्य में बढ़ोत्तरी किए जानें से किसान भाई नारियल की खेती के लिए प्रोत्साहित होंगे। जिससे नारियल की खेती का रकबा बढ़ाने में मदद मिलेगी। अगर इस खेती से किसानों को अच्छी आमदनी होने लगती है, तो नारियल का प्रसंस्करण बिजनेस को बढ़ाने में भी किसान आगे आ सकते हैं।

न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाने के बाद अब इस कीमत पर बिकेगा नारियल

सरकार ने कहा है, कि नारियल का न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाने के बाद अब मिलिंग खोपरा 10,860 रुपये क्विंटल के भाव पर बिकेगा। नारियल की इस किस्म पर 270 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोत्तरी की गई है। जब कि बॉल खोपरा नारियल 11,750 रुपये प्रति क्विंटल के भाव बिकेगा। इस नारियल पर 750 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोत्तरी की गई है। न्यूनतम समर्थन मूल्य के बढ़ने से नारियल के किसानों का मुनाफा बढ़ने की पूरी संभावना है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने कहा है, कि नारियल की कीमतों का निर्धारण कृषि लागत एवं मूल्य आयोग की सिफारिश पर किया गया है। साथ ही, कीमतों के निर्धारण में प्रमुख नारियल उत्पादक राज्यों के सुझावों पर भी गौर किया गया है। नारियल की खेती गेहूं, चावल और सब्जियों से ज्यादा मुनाफे वाली खेती होती है। यदि किसान वैज्ञानिक तकनीकों के जरिए नारियल की खेती करें, तो इस खेती से किसान बंपर कमाई कर सकते हैं। नारियल की खेती में एक बार रोपाई करने के बाद आगामी 80 सालों तक इसकी फसल ली जा सकती है। साथ ही, नारियल के बाग में खाली पड़ी जमीन में काली मिर्च, इलायची या दूसरी मसाला फसलों की खेती करके अतिरिक्त आय भी अर्जित की जा सकती है।


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इन दिनों भारत के साथ ही विदेशी बाजारों में साबुत नारियल तथा नारियल के तेल की जबरदस्त मांग है। साथ ही, इसकी मांग लगातार बढ़ रही है, जिससे भविष्य में किसानों के पास इस खेती से अच्छी कमाई करने का मौका होगा।
किसानों को लिए बड़ी खुशखबरी, सरकार के इस फैसले से मिलेगा डबल फायदा

किसानों को लिए बड़ी खुशखबरी, सरकार के इस फैसले से मिलेगा डबल फायदा

केंद्र सरकार की ओर से उन किसानों के लिए बड़ी खुशखबरी है, जो जूट की खेती करते हैं. दरअसल केंद्र सरकार ने हाल ही में एक बड़ा फैसला लिया है. बताया जा रहा है कि सरकार का ये फैसला बेहद अहम है, जो लगभग 40 लाख जूट के किसानों को फायदा पहुंचाने वाला है. केंद्र सकरार ने पैकेजिंग में जूट का इस्तेमाल अनिवार्य रूप से करने के नियमों को आगे बढ़ाने पर मुहर लगा दी है. इन नियमों के अनुसार खाने पीने की 100 फीसद चीजों और चीनी की 20 फीसद पैकिंग जूट के बैग में करनी जरूरी होगी. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक केंद्रीय मंत्रीमंडल की बैठक में यह फैसला लिया गया है. बता दें देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में यह बैठक सम्पन्न हुई. ये भी देखें: बागवानी के साथ-साथ फूड प्रोसेसिंग यूनिट लगाकर हर किसान कर सकता है अपनी कमाई दोगुनी कैबिनेट ने जूट को साल 2022 से 2023 के लिए पैकेजिंग में जूट का जरूरी रूप से इस्तेमाल करने और इसके आरक्षण से जुड़े नियमों को मंजूरी दी है. इस फैसले से सबसे ज्यादा राहत जूट मिलों और अन्य इकाइयों में काम करने वाले करीब तीन से चार लाख श्रमिकों को मिलने वाली है. इसके अलावा लाखों किसानों के परिवारों को अपनी आजीविका चलाने में मदद मिलेगी. इसके अलावा जूट के अनिवार्य इस्तेमाल से पर्यावरण को साफ और सुरक्षित रखने में मदद मिलेगी. ऐसा इसलिए क्योंकि जूट एक ऐसा फाइबर है, जो पूरी तरह से नेचुरल, बायोडिग्रेडेबल और फिर से इस्तेमाल किया जा सकता है.

अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण है जूट

पश्चिम बंगाल से लेकर बिहार, ओडिशा, त्रिपुरा, असम और मेघालय के लिए जूट बेहद जरूरी है. क्योंकि यहां की अर्थव्यवस्था जूट पर ही टिकी हुई है. वहीं आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के लिए भी जूट बेहद महत्वपूर्ण है. जूट पैकेजिंग यानी की जेपीएम अधिनियम के तहत आरक्षण नियम जूट क्षेत्र में करीब 3.7 लाख श्रमिकों के अलावा लाखों जूट किसानों के लिए बेहतर रोजगार उपलब्ध करवाता है.

9 हजार करोड़ रुपये की है खरीद

बात जेपीएम अधिनियम की करें तो 1987 जूट किसानों, जूट से बने सामान और कामगरों में लगे श्रीमोकों के हित में है. जूट के उद्योग के कुल उत्पादन का लगभग 75 फीसद जूट से बने बोर हैं. जिनमें से करीब 85 फीसद की आपूर्ति भारतीय खाध्य निगम और राज्य खरीद एजेंसियों के द्वारा की जाती है. बता दें कि सरकार खाने की चीजों की पैकेजिंग के लिए हर साल लगभग 9 हजार करोड़ रुपये के जूट के बोरे खरीदती है. इतना ही नहीं इससे जूट कामगारों और जूट किसानों को उनकी उमज के लिए बाजार को सुनिश्चित किया जाता है.

दिया जाता है लीगल फ्रेमवर्क

भारत और गुयान के बीच केंद्रीय मंत्रीमंडल ने हवाई सर्विस एग्रीमेंट पर भी साइन करके अपनी सहमती जता दी है. जानकारी के लिए बता दें कि, गुयाना के साथ हुए हवाई समझौते पर साइन करने से दोनों देशों के बीच होने वाली हवाई सेवाओं के लिए एक रूपरेखा तय भी की जाएगी. हवाई सर्विस समझौते की बात करें तोम यह एक ऐसा एग्रीमेंट है, जहां दोनों देशों के बीच में एयर ऑपरेशंस के लिए लीगल फ्रेमवर्क दिया जाता है. ये भी देखें: ग्रामीण क्षेत्रों में किसानों के लिए स्टार्टअप्स को बढ़ावा देगी एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी

भारत सरकार करती है इसका गठन

अंतरराष्ट्रीय सिविल एविएशन साल 1944 पर सम्मेल में हुए बदलाव से जुड़े अनुच्छेद 3 बीआईएस और अनुछेदन 50 ए के अलावा अनुच्छेदन 56 पर तीन तरह के प्रोटोकॉल के रॉटिफिकेशन को केंद्रीय मंत्रीमंडल ने अपनी मंजूरी दी है. इसके अलावा देश के 22वें लॉ आयोग के कार्यालय को भी 31 अगस्त साल 2014 तक बढ़ाने की मंजूरी मंत्रीमंडल ने दे दी है. आपको बता दें कि, देश का लॉ आयोग एक तरह का नॉन सांविधिक निकाय है. भारत सरकार की तरफ से इसका गठन किया जाता है.
सीवीड की खेती के लिए आई नई तकनीक, सरकार से भी मिलेगी सहायता

सीवीड की खेती के लिए आई नई तकनीक, सरकार से भी मिलेगी सहायता

इन दिनों बाजार में सीवीड (समुद्री सिवार या शैवाल) की मांग तेजी से बढ़ी है। जिसके कारण इसकी मांग को पूरा करने के लिए बहुत सी संस्थाएं नई तकनीकों की खोज में जुटी हैं। सीवीड की खेती आमतौर पर समुद्र पर फैलाई गई रस्सी में की जाती है। इसके साथ ही समुद्र में जाल फैलाकर भी सीवीड की खेती की जाती है। लेकिन इस प्रकार सीवीड की खेती करने में भारी खर्चा आता है जिसके कारण सीवीड की खेती करना बेहद मुश्किल हो गया है। इन सब के बावजूद केंद्र सरकार सीवीड की खेती करने के लिए किसानों को लगातार प्रोत्साहित कर रही है। ताकि देश में सीवीड की उपलब्धता सुनिश्चित की जा सके। सरकार ने अपने आंकड़ों से बताया है कि भारत में शैवाल की बहुत सारी प्रजातियां पाई जाती हैं। जिनका इस्तेमाल लगभग 221 तरह के पदार्थ बनाने में होता है। इसलिए इसकी खेती करने से किसानों को भरपूर मुनाफा हो सकता है।

सीवीड की खेती की तकनीक

यह तकनीक बेंगलुरु स्थित एक
स्टार्टअप ने विकसित की है। जिसे 'सी सिक्स एनर्जी' के नाम से जाना जाता है। स्टार्टअप के संस्थापक ने बताया है कि उन्होंने कई ऐसे तरीके विकसित किए हैं जिनसे बड़ी मात्रा में बेहद आसानी से सीवीड उगाई जा सकती है और उनसे कई उपयोगी पदार्थ बनाए जा सकते हैं।

स्टार्टअप ने तैयार किया सी कंबाइन

सीवीड की खेती करने के लिए स्टार्टअप ने सी कंबाइन तैयार किया है। यह एक ऐसा यंत्र है जो समुद्र में सीवीड की कटाई करता है और दोबारा बीज रोप देता है। जिसे अगली बार के लिए सीवीड उगाने में आसानी होती है। यह यंत्र बेहद व्यवस्थित तरीके से सीवीड की कटाई करता है।

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सीवीड की खेती के लिए सरकार कर रही है प्रोत्साहित

सरकार सीवीड के किसानों को इसकी खेती करने के लिए प्रोत्साहित कर रही है ताकि किसान भाई ज्यादा से ज्यादा मात्रा में सीवीड की खेती करें। इसके लिए सरकार प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के अंतर्गत 5 साल की परियोजना पर काम कर रही है। इस योजना के अंतर्गत सरकार 640 करोड़ रुपए खर्च करने वाली है। इस राशि से सरकार देश के तटीय राज्यों के मछुआरों को शैवाल के उत्पादन के लिए प्रोत्साहित कर रही है। सरकार का उद्देश्य है कि सीवीड की खेती में पुरुषों के साथ-साथ महिलायें भी आगे आएं और इस खेती में बराबर से भागीदार हों। इसके साथ ही सरकार शैवाल उत्पादन बढ़ाने के लिए राफ्ट बनाने के लिए सहायता भी दे रही है। सरकार प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के अंतर्गत राफ्ट और मोनोलिन/ट्यूबनेट बनाने के लिए किसानों और मछुआरों को क्रमशः 1500 रुपये और 8000 रुपये की व‍ित्‍तीय सहायता कर रही है। सरकार का अनुमान है कि यह मदद निश्चित रूप से किसानों को सीवीड की खेती करने के लिए प्रोत्साहित करने में मददगार साबित होगी। जिससे देश मएब सीवीड के उत्पादन को बढ़ाया जा सकेगा साथ ही बाजार में सीवीड की बढ़ती हुई मांग की पूर्ति भी की जा सकेगी।
केंद्र ने जूट की फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाया, जूट उत्पादकों को हुआ फायदा

केंद्र ने जूट की फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाया, जूट उत्पादकों को हुआ फायदा

पूर्वी भारत में जूट का उत्पादन बड़े पैमाने पर किया जाता है। मुख्यतः पूर्वी उत्तर प्रदेश, मेघालय, त्रिपुरा, बिहार, असम, उड़ीसा और पश्चिम बंगाल में लाखों किसान जूट की खेती किया करते हैं। जूट का उत्पादन करने वाले किसान भाइयों के लिए बड़ा समाचार है। किसानों की मांग को मंदेनजर रखते हुए केंद्र सरकार द्वारा कच्चे जूट के न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) मेंं 6 फीसद का इजाफा करने का निर्णय लिया है। जिसके लिए आर्थिक मंत्रिमंडलीय समिति (सीसीईए ) ने स्वीकृति भी दे दी है। विशेष बात यह है, कि सीसीईए द्वारा एमएसपी में यह वृद्धि केवल 2023-24 सीजन हेतु की गई है। इससे भारत के लाखों किसान भाइयों को लाभ होगा। फाइनेंशियल एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, सीसीईए ने कच्चे जूट की एमएसपी में 300 रुपये प्रति क्विंटल का इजाफा किया है। फिलहाल, एक क्विंटल जूट का भाव 5050 रुपये हो गया है। साथ ही, केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने केंद्र सरकार के इस कदम की सराहना करते हुए कहा है, कि एमएसपी की यह वृध्दि वर्ष 2018-19 में घोषित उत्पादन खर्च के अनुसार है। जानकारी के लिए बतादें कि इससे भारत के 40 लाख किसान लाभांवित होंगे। वहीं, 4 लाख कामगार भी इससे फायदा उठाएंगे। उन्होंने बताया है, कि एमएसपी में वृद्धि होने से पैदावार की अखिल भारतीय औसत लागत पर 63.20% का रिटर्न मिलेगा।

जूट का सर्वाधिक उत्पादन इस राज्य में होता है

जानकारी के लिए बतादें, कि पूर्वी भारत में जूट का उत्पादन बड़े पैमाने पर किया जाता है। विशेष रूप से मेघाल, त्रिपुरा, बिहार, असम, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल और पूर्वी उत्तर प्रदेश में लाखों किसान जूट का उत्पादन करते हैं। इन किसानों की आमदनी का प्रमुख साधन भी जूट की खेती होती है। विशेष बात यह है, कि इन प्रदेशों के 33 जनपदों के अंदर जूट का उत्पादन किया जाता है। बतादें कि इन राज्यों में से जूट का सर्वाधिक उत्पादक राज्य पश्चिम बंगाल है। यहां समकुल जूट का 50 फीसद से भी ज्यादा का उत्पादन होता है। यही कारण है, कि पूर्व में पश्चिम बंगाल के अंदर सर्वाधिक जूट मिला था। ये भी पढ़े: सेहत के साथ किसानों की आय भी बढ़ा रही रागी की फसल

केंद्र व राज्य सरकारें जूट की वस्तुओं के कुल पैदावार की 70% खरीदारी करती हैं

जूट का कृषि क्षेत्र में बेहद इस्तेमाल किया जाता है। जूट के इस्तेमाल से थैला, बोरी, बैग और बहुत सी अन्य प्रकार की वस्तुएं भी निर्मित की जाती हैं। साथ ही, जूट उद्योग को प्रोत्साहन देने के लिए, सरकार द्वारा जूट पैकेजिंग अधिनियम, 1987 को अधिनियमित किया है। इसके अंतर्गत जूट में पैक की जाने वाली कुछ वस्तुओं को निर्धारित किया गया है। वहीं, केंद्र सरकार द्वारा जूट बैग में खाद्यान्नों की पैकिंग हेतु आरक्षण भी दे रखा है। इसके खाद्यान्न एवं चीनी हेतु क्रमशः 100% एवं 20% जूट के बैग में पैकिंग जरुरी की गई है। विशेष बात यह है, कि केंद्र एवं राज्य सरकारें खाद्य पदार्थों की पैकिंग हेतु जूट की वस्तुओं की कुल पैदावार का 70% फीसद खरीदारी करती हैं। मुख्य बात यह है, कि जूट की बोरी का सर्वाधिक इस्तेमाल धान एवं गेहूं खरीदी के समय पैकिंग हेतु किया जाता है।
केंद्र सरकार ने इस फसल के न्यूनतम समर्थन मूल्य में किया इजाफा, अब किसान होंगे मालामाल

केंद्र सरकार ने इस फसल के न्यूनतम समर्थन मूल्य में किया इजाफा, अब किसान होंगे मालामाल

देश की केंद्र सरकार लगातार किसानों की आय बढ़ाने का प्रयत्न कर रही है। इसके अंतर्गत आए दिन सरकार नई योजनाएं लॉन्च करती रहती है, जिससे देश के किसानों को फायदा होता है और कृषक आधुनिक तरीके से खेती करके अपने पैरों पर खड़े हो रहे हैं। इसके साथ ही समय-समय पर केंद्र सरकार किसानों से खरीदे जाने वाले अनाज और कच्चे माल के न्यूनतम समर्थन मूल्य में भी बढ़ोत्तरी करती है ताकि किसानों को अपनी फसल का उचित मूल्य मिल सके। अब खबर है कि केंद्र सरकार ने जूट के न्यूनतम समर्थन मूल्य में 6 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी कर दी है। यह निर्णय सरकार ने किसानों की मांग को देखते हुए लिया है। जूट के किसान लंबे समय से न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि की मांग कर रहे थे। इसके लिए केंद्र सरकार की आर्थिक मंत्रिमंडलीय समिति (सीसीईए ) ने मंजूरी भी दे दी है। सीसीईए  के अधिकारियों ने बताया है कि यह वृद्धि सिर्फ 2023-24 सीजन के लिए की गई है। ताकि देश के लाखों जूट किसान इससे लाभान्वित हो पाएं। ये भी पढ़े: न्यूनतम समर्थन मूल्य के बारे में बेहतर जानें फाइनेंशियल एक्सप्रेस ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया है कि सरकार ने जूट के न्यूनतम समर्थन मूल्य में 300 रुपये प्रति क्विंटल की वृद्धि की है। इसके साथ ही अब जूट का सरकारी रेट 5050 रुपये प्रति क्विंटल हो गया है। सरकार की इस घोषणा से देश के 40 लाख जूट किसान लाभान्वित होंगे। साथ ही जूट उद्योग में लगे 4 लाख ज्यादा कामगारों को अप्रत्यक्ष फायदा होगा। जूट के न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि की केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने तारीफ की है।

भारत के इन राज्यों में होता है जूट का उत्पादन

जूट का उत्पादन ज्यादातर पूर्वी भारत में किया जाता है। इसकी खेती खास तौर पर पश्चिम बंगाल, बिहार, असम, उड़ीसा, पूर्वी उत्तर प्रदेश, मेघालय और त्रिपुरा में की जाती है। इन राज्यों के कुछ चयनित जिलों में जूट का उत्पादन किया जाता है। देश में जूट की खेती से लाखों किसान जुड़े हुए हैं। जो इनकी आय का मुख्य साधन है। देश में जूट सबसे ज्यादा पश्चिम बंगाल में उगाया जाता है। भारत के कुल उत्पादन का लगभग 50 प्रतिशत जूट पश्चिम बंगाल में उगाया जाता है। पश्चिम बंगाल का मिदनापुर जिला इसकी खेती का गढ़ माना जाता है। इसी कारण जूट मिलों की संख्या भी पश्चिम बंगाल में सबसे ज्यादा है। भारत दुनिया का सबसे बड़ा जूट उत्पादक देश है। भारत में हर साल औसतन 1,960,380 टन जूट का उत्पादन किया जाता है। भारत के बाद बांग्लादेश जूट का दूसरा सबसे बाद उत्पादक देश है। देश में जूट का सबसे ज्यादा उपयोग बैग, थैला, बोरी, रस्सी और कई अन्य तरह की चीजें बनाने में होता है। देश की केंद्र सरकार जूट की खेती को लगातार बढ़ावा देने की कोशिश कर रही है। इसके लिए सरकार ने इसे जूट पैकेजिंग अधिनियम, 1987 के अंतर्गत अधिनियमित किया है। जिसके अंतर्गत कई तरह की चीजों को जूट की थैलियों में पैक करना अनिवार्य कर दिया गया है। सरकार ने खाद्यान्न को पैक करने के लिए पूरी तरह से जूट के बोरे उपयोग करने के आदेश दिए हैं, इसके साथ ही चीनी की 20% पैकिंग भी जूट के बोरों में करनी होगी। देश में जूट से कुल उत्पादित होने वाले 70 प्रतिशत सामान की राज्य और केंद्र सरकारें खरीदारी करती हैं। देश में जूट के बोरों का सबसे ज्यादा उपयोग अनाज भरने के लिए किया जाता है।
यह राज्य सरकार कृषकों को कृषि यंत्र खरीद पर अच्छा-खासा अनुदान प्रदान कर रही है

यह राज्य सरकार कृषकों को कृषि यंत्र खरीद पर अच्छा-खासा अनुदान प्रदान कर रही है

मध्य प्रदेश सरकार की तरफ से किसानों के हित में ई-कृषि यंत्र अनुदान योजना के अंतर्गत कृष उपकरणों और मशीनों को खरीदने पर 30 से 50 फीसद तक अनुदान मुहैय्या करा रही है। आधुनिक दौर में खेती विज्ञान पर आधारित हो चुकी है। खेती को सुगम और सरल बनाने कि लिए प्रतिदिन नवीनतम मशीनों का आविष्कार किया जा रहा है। इन मशीनों के इस्तेमाल से वक्त की भी बचत होती है। साथ ही, खेती पर किए जाने वाले खर्चे में भी काफी सहूलियत मिलती है। इन्हीं वजहों के चलते अलग- अलग राज्य सरकारें अपने- अपने राज्यों में कृषि यंत्रों की खरीद हेतु बेहतरीन अनुदान देती हैं। जिससे किसान भाईयों को खेती करने में किसी भी तरह की कोई समस्या ना हो पाए। कृषि जागरण के अनुसार, मध्य प्रदेश सरकार की तरफ से किसानों को ई-कृषि यंत्र अनुदान योजना के अंतर्गत कृषि मशीनों की खरीद पर अच्छी-खासी सब्सिडी देने की घोषणा की है। दरअसल, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह सरकार भी इस बात से सहमत है, कि वर्तमान में खेती तकनीक पर आधारित हो गई है। अगर किसान भाइयों को आधुनिक और नवीन मशीनों की खरीद पर आर्थिक सहायता प्रदान नहीं की जाए, तो बाकी राज्यों के कृषकों से पीछे रह जाएंगे। दरअसल, कृषि यंत्र अत्यंत महंगे मिलते हैं। समस्त किसान इन्हें खरीदने के लिए सक्षम नहीं होते हैं। इसी बात को ध्यान में रखकर एमपी सरकार द्वारा कृषि यंत्रों की खरीद पर अनुदान प्रदान करने का निर्णय लिया है।

इन यंत्रों की खरीद पर कितने प्रतिशत अनुदान दिया जाएगा

मध्य प्रदेश सरकार ई-कृषि यंत्र अनुदान योजना के अंतर्गत कृषि ऊपकरणों एवं मशीनों की खरीद पर 30 से 50 प्रतिशत तक अनुदान मुहैय्या करा रही है। इससे कृषकों को श्रू मास्टर, मल्चर, सुपर स्ट्रॉ मैनेजमेंट सिस्टम, सुपर सीडर, क्रॉप रीपर, हैप्पी सीडर और जीरो टिल सीड कम फर्टिलाइजर की खरीद करने पर 40 से 60 हजार रुपये का अनुदान मुहैय्या करा रही है। साथ ही, मध्य प्रदेश सरकार की तरफ से अनुदान की घोषणा करने पर किसानों के मध्य प्रशन्नता की लहर है। किसान भाइयों को यह उम्मीद जताई है, कि इन यंत्रों की सहायता से खेती करने पर अच्छी उपज मिल सकेगी।

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जितने भी विकसित देश हैं सब मशीनों के सहयोग से खेती करते हैं

आज की तारीख में जितने भी विकसित देश हैं, वहां यंत्रों एवं मशीनों की सहायता से खेती-किसानी की जा रही है। रूस, अमेरिका और कनाड़ा समेत बहुत सारे विकसित देशों में किसान अकेले ही यंत्र की सहायता से सैंकड़ों एकड़ में उत्पादन कर रहे हैं। अगर भारत में समस्त किसानों के पास कृषि यंत्र की उपलब्धता हो जाए, तब यहां के कृषक भी पश्चिमी देशों के किसानों की भाँति बेहतरीन ढंग से खेती कर सकेंगे। बतादें, कि मध्य प्रदेश के अतिरिक्त दूसरे प्रदेश भी कृषि यंत्रों की खरीद पर वक्त-वक्त पर अनुदान मुहैय्या करा देते हैं। साथ ही, विगत फरवरी माह में पंजाब सरकार द्वारा कृषि यंत्रों की खरीद करने पर 50 प्रतिशत अनुदान देने की घोषणा की थी। जनरल कैटेगरी में आने वाले किसानों को 40 प्रतिशत अनुदान धनराशि प्रदान की जा रही थी। साथ ही, बाकी श्रेणी के कृषकों को 50 प्रतिशत अनुदान देने का प्रावधान था।
केंद्र सरकार ने अन्न भंडारण योजना को मंजूरी दी, हर एक ब्लॉक में बनेगा गोदाम

केंद्र सरकार ने अन्न भंडारण योजना को मंजूरी दी, हर एक ब्लॉक में बनेगा गोदाम

केंद्र सरकार की तरफ से भारत के अंदर बढ़ती अन्न की बर्बादी को ध्यान में रखते हुए। अन्न भंडारण योजना को स्वीकृति दी है। इस योजना के अंतर्गत देश के प्रत्येक ब्लॉक में गोदाम निर्मित किए जाएंगे। भारत में अन्न की बर्बादी ना हो इसको लेके केंद्र सरकार ने एक बड़ा फैसला लिया है। सरकार की ओर से अन्न भंडारण योजना को स्वीकृति दे दी गई है। जिसके अंतर्गत हर एक ब्लॉक में 2 हजार टन के गोदाम स्थापित किए जाएंगे। इस व्यवस्था को शुरू करने के लिए त्रिस्तरीय प्रबंध किए जाएंगे। इस योजना का उद्देश्य अन्न की बर्बादी को रोकना है। बतादें, कि फिलहाल भारत में अन्न भंडारण की कुल क्षमता 47 प्रतिशत है। परंतु, केंद्र सरकार की इस योजना से अन्न भंडारण में तीव्रता आएगी। कैबिनेट की बैठक खत्म हो जाने के उपरांत केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर का कहना है, कि सहकारिता मंत्री के नेतृत्व में समिति बनाई जाएगी। योजना की शुरुआत 700 टन अन्न भंडारण के साथ होगी। इस योजना की शुरूआत होने पर भारत में खाद्य सुरक्षा को बल मिलेगा। इस योजना को जारी होने पर अन्न भंडारण क्षमता में इजाफा होगा। वर्तमान में भारत के अंतर्गत अनाज भंडारण की क्षमता 1450 लाख टन है। जो कि फिलहाल बढ़कर 2150 लाख टन हो जाएगी।

हर एक ब्लॉक में गोदाम स्थापित किए जाऐंगे

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि इस लक्ष्य को हांसिल करने के लिए 5 साल का वक्त लग जाएगा। इसके लिए केंद्र सरकार पांच साल में 1 लाख करोड़ रुपये का खर्चा करने वाली है। योजना के अंतर्गत भारत के हर एक ब्लॉक में गोदाम स्थापित किए जाऐंगे। केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर के मुताबिक, यह योजना सहकारिता क्षेत्र में विश्व का सबसे बड़ा अन्न भंडारण कार्यक्रम है। इस योजना से भारत में रोजगार के अवसर भी उत्पन्न होंगे। इसके अतिरिक्त फसल की बर्बादी भी रुकेगी। यह भी पढ़ें: भंडारण की समस्या से मिलेगी निजात, जल्द ही 12 राज्यों में बनेंगे आधुनिक स्टील गोदाम

खाद्य सुरक्षा भी सुनिश्चित होगी

केंद्र सरकार के अनुसार, सहकारिता क्षेत्र में गोदाम के अभाव के चलते अन्न की बर्बादी ज्यादा हो रही है। अगर ब्लॉक स्तर पर गोदाम निर्मित होंगे तो अन्न का भंडारण होने के साथ-साथ ट्रांसपोर्टिंग पर आने वाली लागत भी कम आएगी। योजना के अंतर्गत खाद्य सुरक्षा को मजबूती मिलेगी। फिलहाल, भारत में प्रत्येक वर्ष 3100 लाख टन खाद्यान्न की पैदावार होती है। लेकिन, सरकार के पास केवल उत्पादन के 47 प्रतिशत भाग को भंडारण करने की ही व्यवस्था है। जो कि इस योजना के आने के उपरांत ठीक हो जाएगी।
जूट की खेती से संबंधित विस्तृत जानकारी

जूट की खेती से संबंधित विस्तृत जानकारी

जूट एक द्विबीजपत्री, रेशेदार पौधे के अंतर्गत आने वाली फसल है। इसका तना पतला एवं बेलनाकार का होता है। जानकारी के लिए बतादें कि इसके रेशे का इस्तेमाल तिरपाल, टाट, रस्सियाँ, बोरे, दरी, तम्बू, निम्नकोटि के कपड़े एवं कागज निर्मित करने के लिए किया जाता है। साथ ही, जूट एक नकदी फसल है। इससे लोगों को नकद पैसा अर्जित होता है। भारत के उड़ीसा, असम, उत्तर प्रदेश, बंगाल और बिहार के कुछ तराई इलाकों में जूट की खेती की जाती है। इससे तकरीबन 38 लाख गाँठ (एक गाँठ का भार 400 पाउंड) जूट उतपन्न होता है। जूट पैदावार की तकरीबन 67 प्रतिशत भारत में ही खपत है। 7 प्रतिशत किसान के पास रह जाता है, तो वहीं शेष बचा हुआ जूट बेल्जियम, जर्मनी, फ्रांस, इटली, संयुक्त राज्य, अमरीका और ब्रिटेन को निर्यात होता है। बतादें, कि ब्राज़िल, अफ्रीका, अमरीका आदि बाकी देशों में इसका उत्पादन करने का प्रयास किया गया है। लेकिन, भारत के जूट के सामने वह आजतक टिक नहीं पाए।

जूट की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु एवं मृदा

किसी भी फसल की बेहतरीन पैदावार के लिए उस स्थान की मृदा एवं जलवायु अपनी अहम भूमिका निभाती है। जानकारी के लिए बतादें कि जूट की खेती के लिए गरम और नम जलवायु उपयुक्त मानी जाती है। वहीं, तापमान 25-35 सेल्सियस एवं आपेक्षिक आर्द्रता 90 प्रतिशत रहनी चाहिए। साथ ही, हल्की बलुई, डेल्टा की दोमट मृदा में खेती बेहतर होती है। इस नजरिये से बंगाल की जलवायु इसके लिये सबसे ज्यादा अनुकूल होती है। खेत की जुताई बेहतर ढंग से होनी चाहिए।

जूट के पौधों से कितने प्रकार के रेशे प्राप्त होते हैं

जूट के रेशे दो तरह के जूट के पौधों से अर्जित होते हैं। यह पौधे टिलिएसिई कुल के कौरकोरस कैप्सुलैरिस और कौरकोरस ओलिटोरियस हैं। रेशे के लिये दोनों ही उत्पादित किए जाते हैं। प्रथम तरह की फसल कुल वार्षिक खेती के 3/4 हिस्से में और दूसरे तरह की फसल कुल खेती के शेष 1/4 भाग में होती है। यह मुख्यतः भारत और पाकिस्तान में उत्पादित किए जाते हैं। यह भी पढ़ें: केंद्र सरकार ने इस फसल के न्यूनतम समर्थन मूल्य में किया इजाफा, अब किसान होंगे मालामाल कैप्सुलैरिस काफी कठोर होता है और इसकी खेती ऊँची और नीची दोनों तरह की भूमियों में की जाती है। लेकिन, ओलिटोरियस की खेती सिर्फ ऊँची जमीन में होती है। कैप्सुलैरिस के बीज अंडाकार गहरे भूरे रंग के, पत्तियाँ गोल एवं रेशे सफेद पर कुछ कमजोर होते हैं। परंतु, ओलिटोरियस की पत्तियाँ वर्तुल, सूच्याकार और बीज काले रंग के होते हैं और रेशे सुंदर सुदृढ़ परंतु थोड़े फीके रंग के होते हैं। कैप्सुलैरिस की प्रजातियां देसीहाट, बंबई डी 154, आर 85, फंदूक, घालेश्वरी और फूलेश्वरी हैं। ओलिटोरियस की देसी, तोसाह, आरथू एवं चिनसुरा ग्रीन हैं। बीज से फसल उत्पादित की जाती हैं। बीज के लिये पौधों को पूर्णतयः पकने दिया जाता है। लेकिन, रेशे के लिये पकने से पूर्व ही काटा जाता है।

जूट की खेती में खाद एवं उर्वरक

जूट की खेती के अंतर्गत प्रति एकड़ 50 से 100 मन गोबर की खाद अथवा कंपोस्ट और 400 पाउंड लकड़ी या घास पात की राख डाली जाती है। हालाँकि, पुरानी मृदा में 30-60 पाउंड नाइट्रोजन डाला जा सकता है। कुछ नाइट्रोजन बोने के पूर्व एवं शेष बीजांकुरण के एक सप्ताह पश्चात देना चाहिए। पोटाश और चूने से भी फायदा होता है।

जूट की बिजाई का समुचित वक्त क्या होता है

नीची जमीन में फरवरी में एवं ऊँची भूमि में मार्च से जुलाई तक बिजाई होती है। सामान्यतः छिटक बोआई होती है। हालाँकि, आजकल ड्रिल का भी इस्तेमाल किया जाने लगा है। प्रति एकड़ 6 से लेकर 10 पाउंड तक बीज लगता है। पौधे को तीन से लेकर नौ इंच तक बड़े होने पर सर्वप्रथम गोड़ाई की जाती है। उसके पश्चात दो या तीन निराई और भी की जाती हैं। जून से लगाकर अक्टूबर तक फसल कटाई की जाती है। फूल झड़ जाने और फली निकल आने की स्थिति में ही फसल को काटना चाहिए। क्योंकि, विलंब करने पर पछेती कटाई से रेशे ताकतवर परंतु भद्दे एवं मोटे हो जाते हैं। साथ ही, उनके अंदर चमक नहीं होती है। बतादें, कि ज्यादा अगेती कटाई से उत्पादन कम एवं रेशे कमजोर पड़ जाते हैं।

जूट की कटाई और पौधरोपण

बतादें, कि जमीन की सतह से पौधों को काटा जाता है। तो कहीं-कहीं पौधे आमूल उखाड़े जाते हैं। इस कटी फसल को दो तीन दिन सूखी भूमि में छोड़ देते हैं, जिससे कि पत्तियाँ सूख और सड़ कर गिर जाती हैं। तब डंठलों को गठ्ठरों में बाँधकर मृदा, पत्तों, घासपातों इत्यादि से ढँककर छोड़ देते हैं। उसके उपरांत गठ्ठरों से कचरा हटाकर उनकी शाखादार चोटियों को काटकर निकाल लेते हैं। फिर पौधे गलाए जाते हैं। गलाने के दौरान दो दिन से लेकर एक माह तक का वक्त लग सकता है। यह काफी कुछ वायुमंडल के तापमान और जल की प्रकृति पर निर्भर करता है। गलने का कार्य कैसा चल रहा है, इसकी शुरुआत में प्रति-दिन जाँच करते रहते हैं। जब यह देखा जाता है कि डंठल से रेशे बड़ी ही आसानी से निकाले जा सकते हैं, तब डंठल को जल से निकाल कर रेशे अलग करके और धोकर सुखाते हैं। यह भी पढ़ें: किसानों को लिए बड़ी खुशखबरी, सरकार के इस फैसले से मिलेगा डबल फायदा रेशा निकालने वाला पानी में खड़ा रहकर, डंठल का एक मूठा लेके जड़ के समीप वाले छोर को छानी अथवा मुँगरी से मार-मार कर सभी डंठल की छिलाई कर लेता है। रेशा यानी डंठल टूटना नहीं चाहिए। फिलहाल, वह उसे सिर के चारों तरफ घुमा-घुमा कर जल की सतह पर पट रख कर, रेशे को अपनी तरफ खींचकर, अपद्रव्यों को धोके एवं काले धब्बों को चुन-चुन कर बाहर निकाल देता है। साथ ही, फिलहाल उसका जल निचोड़ कर धूप में सूखने हेतु उसे हवा में टाँग देता है। रेशों की पूलियाँ बाँधकर जूट प्रेस में पहुंचाई जाती हैं, जहाँ उनको भिन्न-भिन्न विलगाकर द्रवचालित दाब में दबाकर गाँठ निर्मित होती हैं। डंठलों में 4.5 से 7.5 प्रति शत रेशा रहता है।

जूट के रेशे का उत्पादन और उपयोगिता

अगर रेशे की बात की जाए तो इन रेशों की करीब छह से लेकर दस फुट तक लंबाई होती है। परंतु, विशेष अवस्थाओं में यह 14 से लेकर 15 फुट तक लंबे पाए गए हैं। शीघ्र का निकला रेशा अधिक कोमल, अधिक सफेद, ज्यादा मजबूत और अधिक चमकदार होता है। खुला रखने की वजह से इन गुणों का ह्रास होता है। जूट के रेशे का विरंजन कुछ सीमा तक माना जा सकता है। परंतु, विरंजन से बिल्कुल सफेद रेशा अर्जित नहीं होता है। रेशा आर्द्रताग्राही माना जाता है। छह से लगाकर 23 प्रतिशत तक रेशे में नमी रह सकती है। जूट का उत्पादन, भूमि की उर्वरता, फसल की किस्म, अंतरालन, काटने का वक्त इत्यादि अनेक बातों पर आधारित होता है। कैप्सुलैरिस का उत्पादन प्रति एकड़ 10-15 मन एवं ओलिटोरियस की 15-20 मन प्रति एकड़ होता है। बेहतर ढंग से जोताई करने पर प्रति एकड़ 30 मन तक उत्पादन हो सकता है। जूट की उपयोगिता की बात की जाए तो इसके रेशे से बोरे, हेसियन और पैंकिंग के कपड़े तैयार होते हैं। घरों की सजावट के सामान, अस्तर, रस्सियाँ, कालीन, दरियाँ, परदे भी बनते हैं। डंठल जलाने के कार्य में आती है एवं उससे बारूद के कोयले भी निर्मित किए जा सकते हैं। डंठल का कोयला बारूद हेतु बेहतर होता है। डंठल से लुगदी भी अर्जित होती है, जो कागज निर्मित करने के काम में आ सकती है।
केंद्र सरकार ने धान सहित इन फसलों की एमएसपी में की बढ़ोत्तरी

केंद्र सरकार ने धान सहित इन फसलों की एमएसपी में की बढ़ोत्तरी

धान के न्यूनतम समर्थन मूल्य में 143 रुपये प्रति क्विंटल की दर से वृद्धि की गई है। इसी प्रकार तुअर एवं उड़द दाल के न्यूनतम समर्थन मूल्य में भी काफी ज्यादा इजाफा हुआ है। मानसून के आने से पहले केंद्र सरकार ने किसानों को बड़ा उपहार दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार द्वारा धान समेत विभिन्न फसलों की एमएसपी बढ़ा दी है। जानकारी के अनुसार, धान की एमएसपी में 143 रुपये प्रति क्विंटल की दर से इजाफा किया गया है। इसी प्रकार तुअर एवं उड़द दाल के न्यूनतम समर्थन मूल्य में भी खूब वृद्धि की गई है। साथ ही, इस खबर से किसानों के मध्य खुशी की लहर दौड़ रही है। किसानों ने केंद्र सरकार के इस कदम की काफी सराहना की है।

केंद्र सरकार ने धान सहित दलहन की एमएसपी में किया इजाफा

कैबिनेट बैठक के पश्चात मोदी सरकार ने धान के साथ- साथ दलहन के न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि की स्वीकृति दी है। विशेष बात यह है, कि खरीफ फसलों की एमएसपी में 3 से 6 प्रतिशत का इजाफा किया गया है। तुअर दाल की एमएसपी में 400 रुपये प्रति क्विंटल की दर से वृद्धि की गई है। इस तरह अब तुअर दाल का भाव बढ़कर 7000 रुपये क्विंटल तक पहुँच चुका है। साथ ही, उड़द दाल के न्यूनतम समर्थम मूल्य में 350 रुपये की वृद्धि की गई है। फिलहाल, एक क्विटंल उड़द दाल की कीमत 6950 रुपये हो चुकी है।

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मोटे अनाज की फसलों पर कितने रुपये प्रति क्विंटल की दर से वृद्धि की गई है

विशेष बात यह है, कि मोटे अनाज की एमएसपी में भी वृद्धि दर्ज की गई है। केंद्र सरकार द्वारा मोटे अनाज की खेती को प्रोत्साहन देने के लिए यह कदम उठाया गया है। केंद्रीय कैबिनेट ने मक्के की एमएसपी में 128 रुपये प्रति क्विंटल की दर से वृद्धि की है।

करोड़ों गरीबों को खाद्य उपलब्ध कराया गया है

साथ ही, बैठक के पश्चात मीडिया को संबोधित करते हुए केंद्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने कहा है, कि खरीफ की पैदावार 2018 में 2850 लाख टन था। जो कि अब बढ़कर 330 मिलियन टन पर पहुँच जाएगा। उनकी माने तो मूंग दाल की एमएसपी में 10% प्रतिशत से ज्यादा की वृद्धि हुई है। अब मूंग दाल की कीमत 8558 रुपये क्विंटल तक पहुँच गई है। वहीं, सोयाबीन, रागी, ज्वार, बाजारा और मेज की एमएसपी में 6 से 7% प्रतिशत का इजाफा किया गया है। इसी प्रकार कपास के समर्थन मूल्य में भी 10% प्रतिशत तक की वृद्धि की गई है। विशेष बात यह है, कि सरकार ने फर्टिलाइजर के भाव में किसी प्रकार की बढ़ोत्तरी नहीं की है। सरकार का यह कहना है, कि हमारी सरकार ने 16-17 करोड़ गरीबों को खाद्य उपलब्ध कराया है।

केंद्र सरकार प्रतिवर्ष 23 फसलों के लिए एमएसपी जारी करती है

बतादें, कि कृषि लागत और मूल्य आयोग (CACP) की सिफारिशों के आधार पर सरकार प्रति वर्ष 23 फसलों के लिए एमएसपी निर्धारित करती है। CACP 23 फसलों पर एमएसपी की सिफारिश लागू करता है। इसके अंतर्गत सात अनाज, सात तिलहन, पांच दलहन और चार कमर्शियल फसलें शम्मिलित हैं। इन 23 फसलों में से 15 खरीफ फसलें हैं और अन्य रबी फसलें हैं।

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पिछले साल बासमती चावल के निर्यात का आंकड़ा क्या था

बतादें, कि धान की एमएसपी में वृद्धि किए जाने से पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, ओडिशा, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और बिहार समेत विभिन्न राज्यों के किसानों को मोटा मुनाफा अर्जित होगा। क्योंकि, इन राज्यों में धान का काफी अच्छा उत्पादन होता है। एकमात्र पश्चिम बंगाल 54.34 लाख हेक्टेयर में धान की खेती करता है, जिससे 146.06 लाख टन धान की पैदावार होती है। विशेष बात यह है, कि भारत सबसे ज्यादा बासमती चावल का निर्यात करता है। विगत वर्ष भारत ने 24.97 लाख टन बासमती चावल का निर्यात किया था।
किसानों के हित में सरकार की तरफ से चलाई जा रहीं महत्वपूर्ण योजनाऐं

किसानों के हित में सरकार की तरफ से चलाई जा रहीं महत्वपूर्ण योजनाऐं

किसानों के सशक्तिकरण के लिए सरकार की ओर से विभिन्न योजनाएं जारी की जा रहीं हैं। इन योजनाओं का प्रत्यक्ष तौर पर लाभ किसान भाइयों को प्राप्त हो रहा है। किसान भाइयों की आर्थिक हालत को सशक्त करने से लेकर फसल की बेहतर बढ़वार और बिक्री के लिए सरकार के तरफ से विभिन्न योजनाएं चलाई जा रही हैं। इन योजनाओं का प्रमुख उद्देश्य किसान भाइयों का सशक्तिकरण है। मेरीखेती के इस लेख में आज हम आपको ऐसी योजनाओं के विषय में जानकारी देंगे, जो कि किसानों के फायदे के लिए सरकार की तरफ से चलाई जा रही हैं।

किसानों के सशक्तिकरण हेतु चलाई जा रहीं योजनाएं इस प्रकार हैं

पीएम किसान सम्मान निधि योजना

पीएम किसान सम्मान निधि योजना के अंतर्गत किसान भाइयों को हर एक वर्ष सरकार की ओर से 6 हजार रुपये की आर्थिक सहायता प्रदान की जाती है। इस योजना के अंतर्गत किसानों के खातों में चार महीने के अंतराल पर दो-दो हजार रुपये भेजे जाते हैं।

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना

यह योजना किसानों के लिए सुरक्षा कवच के तौर पर कार्य करती है। योजना के तहत रबी एवं खरीफ की फसलों का बीमा किया जाता है। रबी की फसल के लिए डेढ़ प्रतिशत और खरीफ के लिए लागत का 2 प्रतिशत प्रीमियम भरना होता है। अत्यधिक हानि होने की स्थिति में किसान भाई योजना के अंतर्गत मुआवजा प्राप्त कर सकते हैं।

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प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना

फसलों की बेहतरीन सिंचाई के लिए सरकार प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना चला रही है। योजना के अंतर्गत किसानों को ड्रिप सिंचाई और स्प्रिंकलर सिंचाई प्रणाली अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। किसानों को 90 प्रतिशत तक अनुदान प्रदान किया जाता है।

किसान क्रेडिट कार्ड

खेती के कार्यों के लिए किसान भाइयों को धन की आवश्यकता होती है। ऐसी स्थिति में उनके लिए किसान क्रेडिट कार्ड योजना चलाई जा रही है, जिसके अंतर्गत किसान भाई कम ब्याज पर 50,000 रुपये से लेकर 3 लाख रुपये तक का ऋण अर्जित कर सकते हैं। किसानों को 1,50,000 रुपये तक का ऋण बिना किसी गारंटी के ही प्रदान किया जाता है। इन योजनाओं के अतिरिक्त सॉइल हेल्थ कार्ड, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन, कृषि अवसंरचना कोष, ई-नाम और राष्ट्रीय कृषि विकास योजना जैसी योजनाएं चलाई जा रहीं हैं।